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भारत-भारती

वः औरत में भी सरसता वास करती थी यहाँ, पर साथ ही वह आत्म-संयम था यहाँ का-सा कहाँ ? अाकर करे रति-याचना में उर्वशी-सी भामिनी, किर कौन ऐसा है, कई जो मत हे। यों कामिनी' ।। ३७ ।। यदि भूल कर अनुचित किसी ने काम कर डाल कभी, तो वह स्वयं नृप के निकट दण्डार्थं जाता था तभी । अब भी ‘लिखित सुनि' का चरित वह लिखित है इतिहास में, अनुपम सुजनता सिद्ध है जिसके अमल अभ्यास में ।।३८५ --अर्जुन उद्ध दिव्यास्ट करने के लिये इन्द्रलोक को गये तब बह उर्दी नामको असरः उनके रूप-गुण पर मोहित होकर एक इन उनके पास आई और अनेक हाव-भाव दिखलाती हुई अपने ऊपर अनुरक्त होने के लिये उनसे प्रार्थना करने लगी । उसकी बातें सुन कर अजुन ने कहा कि तुम देवराज की सेवा में रहने वाली हो, अतएव मेरे लिये तु शची के समान ही पूज्य हो । तुमको मुझसे ऐसी अनुचित ते कदापि न कहनी चाहिए । २---संग्छ और लिखित नामके दो भाई थे । वे ब तपस्वी और सधारी थे । बहुदा नदी के किनारे उन दोनों के जुद जुदा आश्रम थे। एक दिन लिखित मुलं अपने बड़े भाई शंख मुनि के आश्रय में पहुँचे, व के वृक्षे में स्वादिष्ट और मधुर फल लगे हुए थे । शंख की अनुपस्थिति में लिखित में उभ फ ो तोड़ कर खाया ! जब शंख को यह द मालूम हुई तब उन्होने कहा भाई, तुमने अच्छा काम नहीं किया । ज्ञा ॐ दिनों में अग्नि के फल चे खाये ? के हो, तुम चेरी के अपराध के अपराधी हो । अतएव तुम्हें चाहिए कि तुम राजा के