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भारत-भारती

द्विज-पुत्र-रक्षा-हित जिन्होंने सुस-मरण सोचा नहीं, | विदुला, सुमित्रा और कुन्तो-तुल्य माताएँ। रही ।। ४१ ।। बदली न जा, अल्पायु वर भी वर लिया सो वर लिया; मुनि को सता र भूल से, जिसने उजित प्रतिफल दिया । १-(क) युद्ध में सिभ गुरज से हार कर निश्चेष्ट बैठे हुए संजय नमक राजकुमार को उसकी साता विदुला ने अनेक प्रकर के नीदियुक्त जवन द्वारा फिर युद्ध करने के लिये उत्साहित और उत्तेजित किया और अन्त में उसने अपने शत्रु को पराजित रकै विजयलक्ष्मी पाई ।। | (ख) नच अश्रू ऊर्मिला के रहते हुए भी सुमित्रा का अपने प्रिय पुत्र लक्ष्य को चौदह वर्ष के लिए रामचन्द्रजी के साथ वन भेज देने का वृत्तान्त तो प्रसिद्ध ही है। (ग) एकचक्रा नगर में बक्र नामक एक राक्षस ने बड़ा उत्पात अचा रक्खा या । नार निवासियों से बह नित्य एक मनुष्य भेट में लेता If और उसे मार कर खेद जाता था । एक दिन १rvडव भी उसी नगरी ॐ अकिर एक ब्राहू । के यह हरे । उस दिन उसी हिप के पुत्र की उस राक्षस के पास जाने की बारी थी । उसकी माता और स्त्री दोन रो रही थी । कुन्ती ने सब हाल जान कर और यह विचार कर ॐ जिसके हम अतिथि हुए हैं---जिसने हमें अभय दिया है- उसका उपकार करना हमारा धर्म है । कुन्ती ने सोचा कि यदि महि * पुत्र की रक्षा के लिये मेरा छुक पुत्र मर भी जाया तो भी मै चार पुत्र रहेंगे । एदी के तो एक ही पुत्र है। अस्तु । उस प्रारू मार के बदले में भलेन को भेज दिया । अन्त में भीमसेन ने उस वक राक्षस ने मार कर सदा के लिए पुर-वासियों की वह विपत्ति