पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/२६

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भारत-भारत हमारी सभ्यत? शैव-दशा में देश प्रायः जिस समय सब व्याप्त थे, निःशेष विषयों में सभी हम प्रौढ़ता के प्राप्त थे । संसार के पहले हर्मी ने ज्ञान-भिक्षा दान की। अचार की, व्यवहार की, व्यापार की, विज्ञान की }} ४५ 1 'हाँ' और 'ना' भी अन्य जन करना न जब थे जानते, थे इश के आदेश तब हम वेदमंत्र बखानते । जब थे दिगम्बर रूप में ये जङ्गों में घूमते, प्रसाद-केतन-पट हमारे चन्द्र के थे चूमते ।। ४६ ।। जब मांस-भक्ष पर वने में अन्य जन थे जी रहे, कृषि-काय करके अयं तु शुचि सेमरस थे पी रहे। मिलता न यह सात्त्विक सु-भेजन यदि शुभविष्कार का, ते पर क्या रहता जगत में उस विकृत व्यापार का ? ।। ४७ ।। | १-२० फरवरी १८८४ कै ‘डेली टयून' नामक पत्र में ऊन (!). (), Brow ) साहब ने स्वीकार किया है कि “यदि हम पक्षपात रहित होकर भली भाँति परीक्षा करें तो हमको स्वीकार करना पगा कि हिन्दू ही सारे संसार के साहित्य, धर्म और सभ्यता के