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अतीत खण्ड


हमके। विदित थे तत्व सारे नाश और विकाश के
काई रहस्य छिपे न थे पृथ्वी तथा आकाश के ।
थे जे हज़ारों वर्ष पहले जिस तरह इमने कहे,
विज्ञान-वेत्ता अन्न वही द्धिान्त निश्चित कर रहे ।। ५६ ।।

है हानिकारक नोति निश्चय निकटकुल में व्याह को,
हैं लाभकारक रीति शव के गाड़ने से दाह कः” ।
यूरोप के विद्वान भी अब इस तरह कहने लगे,
देखो कि उलटे स्रोत सीधे किस तरह बहने लगे ! ।। ५७ ।।

निज का प्रभु की प्रेरणा ही थे नहीं हम जानते,
प्रत्युत उसे प्रभु का किया ही थे सदा हम सबनते ।
भय था हमें ते बस उसका और हम किससे डरे ?
हाँ, जब मरे हम तब उसके प्रेम से विह्वल मरे ।।५८।।

था कौन ईश्वर के सिवा जिसके हमारा सिर के ?
हाँ, कौन ऐसा स्थान था जिसमें हमारे गति रुके ?

१-यूरोप के अनेके डाक्टरों की राय है कि निकट-कुल में विधा। होने की रीति हानिकारक है । यदि यह रीति प्रचलित रही तो बिदा और तेजस्वं? दालक उत्पन्न न होंगे । इसी तरह मुद्दे को गड्ढे के अपेक्षा जलाने की रीति से लाभदायक सुभाने लगे हैं। प्रसिद्ध, यूरोप तत्ववेता हुदै स्पैन्सर पहले ही लिख गया था कि उसकी मृत शरी गाड़ी न जाय; जलाया जाय। ऐसा ही किया भी गया ।