पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३२

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भारत-भारत प्रारम्भ जब जो कुछ क्रिया हमने उसे पूरा किया, था जे असम्भव भो उसे सम्भव हुअ दिखला दिया । कहना हृमा बस यही था विघ्न और विरामि सेकरके हटेंगे हस कि अब मर के हटेंगे काम से ।। ६३ ।। यह ठीक है, पश्चिम बहुत ही कर रहा उत्कर्ष है, पर पूर्व-गुरु उसका यही पुरु बृद्ध भारतवर्ष हैं । जाकर विवेकानन्द-सम कुछ साधु जन इस देश - अरसे उसे कृतकृत्य हैं अब भी अतुल उपदेश से ।। ६४ ।। चे जातियाँ | आई उन्नलिमार्ग में हैं बढ़ रहीं, सांसारिक स्वाधीनता की सदियों पर चढ़ रहीं । यह हैं। कहें, यह शक्ति उनके प्राप्त कब कैसे हुई ? यह भी कहें ३. दार्शनिक चर्चा वहाँ ऐसे हुई ।। ६५ ।। यूनान हो कह दे कि वह ज्ञान- क था हुअा ? कहना न होग, हिन्दुओं का शिष्य वह जब था हो । हम अलौकिक ज्ञान का श्रलोक युदि पता नहीं, वा वह अरद-यूरोप को शिक्षक कहा जाता नहीं ।। ६६ ।। १- क) प्रायः सब ये और पुराने इतिहासवे इस दात.को स्वीकार करते हैं कि इन, विज्ञान और सभ्य-सभ्यधनी सी बातें यूनान ने भारतब ही में सीखी हैं और वहाँ से अथव। इसी प्रकार परस्पर सरे संसार ने 3 की । यूरोप और अरब में यहीं से जाकर प्रकाश फेला । वर्तमान भूगोल, इतिहास और पुराने विन्हीं की खोज स्पष्टता से प्रकट