पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३४

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भारत-भारतो यूरोप मी जे बन रहा है आज कल मम्मिक मना, यह तो कहे उसके खुदा का पुत्र अब धाम्मिक बना ? था हिन्दुओं का शिष्य ईसर, यह पता भी है चला, इसाइयों का धम्भ भी है बौद्ध साँचे में ढल[१ ।। ६८ ।। ---(क) हाल में रूस के नोटविच भासक यात्री को तिब्बत के हीमिस नामक मठ में ईसा का एक प्राचीन हस्तलिखित जीवनचरित्र मिला है । वह पाली भाषा में है और बड़ी बड़ी दो जिल्द में समाप्त हुआ है । ईसरइयों का कथन है कि ईसा ईश्वर का पुत्र था और वह सरिथम नाम की मुक कुंआरी लड़की से पैदा हुआ था । परन्तु इस जीवनी से मालम हुआ है कि वह इसराईल में पै; हुआ था, और उसके माँ-बाप गरीब थे । १३, १४ घ की में वह अपने माँ-बाप से रूट कर घर से भारा निकला और हिन्दुस्तान में आया ! यहाँ वह राजगृह, काशी और जराअथ पुरी आदि स्थानों में घूमता रहा और आर्यों से वेदाध्ययन करता रहा। इसके बाद उसने पाली भाषा सीखी और वह शुद्ध बौद्ध हो गया । पर अपने देश को लौट कर उसने अपना नया ही धर्म चलाना चाह; इसी अखेड़े में उसे फाँसी की सजा हो गई। इससे मालूम होता है कि अन्यान्य मत के समान ईसाई धम्म भी भारतवर्ष की ही सामग्री से तैयार (ख) दत्त साहब ने अपने इतिहास में दद्ध और ईसाई धर्म की हुत समानता के अनेक उदाहरण दिये हैं । इससे भी यही बात सिद्ध