पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३६

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भारत-भारती अन्तिम प्रभा का है हमार बिक्रसो संवत् यहाँ, है किन्तु औरों को उदय इतना पुराना भी कहाँ १ ईसा, मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है वहा ? ।। ७२ 13 रह की दिद्या, कला और अन्य बहुत सी वस्तुओं का प्रचार किया था । कुछ दिन हुए न्यूयार्कवास्। डेलमार साहब का एक लेख इंडियन रिव्यू * निझळा थई । उसमें अपने सिद्ध किंथा है कि प>िभी संसार को जिन अक्ष पर अभिमान हैं वे असल में भारतवर्ष से ही वहाँ गई थी । अप लिस्नाते हैं कि तरह तरह के फल-फूल, पेड़ और पौधे जो इस समय र में पैदा होते हैं, हिन्दुस्तान ही से लाकर वहाँ लगाये गये थे । इनके स्त्रिी मलमल, देशन, घोड़े, टीन, लौहे, और सीसे की प्रचार भी थोरय * हिन्दुस्तान ही के द्वारा हुआ था । केवल यही नहीं, किन्तु ज्योतिष, वैद्यक, चित्रकारी और कानून भी भारतवासियों ने ही योग्य वालों को सिवाया थः । पर अब समय के फेर को देखिए कि स्वयं भारतवासी इन विद्याओं को सीखने के लिए योरप जाते हैं ? १-क्र ीलने आदि पश्चिमी विनों कई सिदान्त है कि : विक्रमादित्य ईसा की छठी शताब्दी में हुए, ईसा से ५७ वर्ष पहले नहीं । अतएव विक्रम संवत् ईसा के छठे शतक का है। परन्तु रावबहादुर सी० बी० ३००, एम०ए०एल०एल० बी० महाशय ने इक्त डाक्टर साहब एवं अन्यान्य यूरोपी चिद्वानों के उपयुक्त सिद्धान्त को अच्छी तरह से खण्डन के यह सिद्ध कर दिया है कि शुकारि विक्रमादित्य ने, ईसा से ५७ वर्षे पहले, शक को परास्त करके भारतवर्ष से निकाल दिया और अपनी उस' ही आरी विजय की स्मृति के लिए विक्रम-सं का कालापा ।