पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३८

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२८ भारत-भारत इस वेद, वाकेावाक्य-विद्या, ब्रह्मविद्या-विज्ञ थे, नक्षत्र-विद्या, क्षेत्र-विद्या, भूत-विद्याऽभिज्ञ थे । निधि, नीति-विद्या, राशि-विद्या, पित्र्य-विद्या में बढ़े, पोदि-विद्या, देव-विद्या, दैव-विद्या थे पढे ।} ७८ ॥ 5-महर्षि सनत्कुमार के पूछने पर ऋयि नारद ने कहा कि मैंने थे। दिशा” पड़ी हैं---

  • सहोचव भावोऽध्येन यजुर्वेद, सामवेदमाथां चतुर्थमिति हसपुराणं पञ्चमं वेदानां चेदं पिय राज्ञ दैत्र न ४ बाकीदाथमेश्यने देदवियाँ ब्रहावयां भूतथिई क्षत्रदियां नक्षत्रवियां * सर्पदेयान चमेत भदोध्यमि।”

छान्दोग्योपनिषद् ।। अर्थात् है भगवन् ! मैंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इप्ति४ार, पुराण, बेदी के अर्थ विधायक अन्य, पितृवि, शिविद्या, दैववद , निवि . , वाकवाक्यविया, एकायनवि, देवविद्या, ब्रह्मविद्या, भूतवि६५, क्षत्रवि, नक्षत्रविड़ और स६३चन व ॐ का अध्ययन किया है। । इन विद्याओं की ब्याया भारतवर्ष के इतिहास में इस तरह की इतिहास, पुरण (Histo: ), “वेदानां वेदम्' अर्थात् बंद के अर्थ जिन विद्याओं से जाने जा। थथा व्याकरण, निरुक्तादि { ८ १३ani18t and Philology, sc. ) “पिश्यम्” पितरों के प्रसन्न रखने की विद्यः ( Aathropology ), राशिम्” बाणित अY ( Matherriatics ), “दैवम् उत्पातविद्या, यथा भूकम्प, श्रावन, विद्युत्कोप, वायुकोप ( Physical Geography }, निधिम् खानों की विदा (Minerology ), “वाकोवाश्यम्" *शास्त्र ( Log: }, “एकायनन्” नीतिविद्या ( Ethics }, देवविद्याम्” ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता कि यह 'देव' शब्द का क्या