पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३९

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अतीत खण्ड आये नहीं थे स्वप्न में भी जो किसी के ध्यान में, वे प्रश्न पहले हल हुए थे एक हिन्दुस्तान में । सिद्धान्त मानव-जाति के जो विश्व में वितरित हुए, बस्स, भारतीय तपावनों में थे प्रथम निश्चित हुए। ७९ ॥ अभिप्राय है । परन्तु ब्राह्मण अन्यों में जो आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह अदित्य, बिजली और हवन-यज्ञ को तेत ३ देब मान; है । यदि उनकी व्याख्या देववि में हो तो निःस देह यह विद्या बहुत बड़ी होगी, जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण तत्वविद् तथा रसायन, शिप; सभी होने और सश्थ ही मैटर वा तव से भिई चेतन जीव की भी व्याख्या होगा ? Physical Scienc3) “ब्रह्मविद्याम्” जिसमें ब्रह्म की व्याख्या ( Bahrma Vidya), भूतविद्याम् आणि की विद्या अधांत प्राणियों के प्रकार वन सथा उनकी रचनादि (Zoolo5, A1atonly, etc.) “क्षत्रविद्याम् धनुर्विद्या तथा रजशासनविद्या ( iiiiitary Science arad Art of Government ), नक्षत्रांवद्याम् ज्योति ( Astro10nay ), सर्पदवजनवियम्” का तात्पर्य ठीक ठीक नहीं ज्ञात होता. परन्तु सम्भव है कि इसमें सर्पो के विष दूर करने की विद्या तथा देव और जन ले सम्बन्ध रखने वाली अनेक प्रकार को विद्या का वर्णन छो, (Scientitic treatment of venomoue reptiles, etc.)" सम्भव है कि इस व्यख्या में कहीं कहीं विनों का मतभेद हो ।। १–अध्यपक मैक्समुलर ने अपने एक व्याख्यान में एक बार कही था कि यदि कोई मुझसे यह बात पूछे कि वह देश कौन और कहाँ हैं जहाँ पर मनुष्य ने इतनी मानसिक अति की है कि वह उसोत्तम गुण की वृद्धि कर सका हो और जहाँ कि मानवसम्बन्धी बढ़ी बड़ी गूढ़ बातों पर विचार किया गया हो और जहाँ उनके हल करनेवाले पैदा हुए हों तो मैं यही उत्तर देंगा कि वह देश भारतवर्ष है !