पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४

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समर्पण

देश-हितैषी, विद्या प्रेमी, लोकप्रिय, उन्नतममा,

कुरीसुदौली के अधिपति,

माननीय

श्रीमान राजा रामपालसिंहजी,

के. सी. आई.ई.

की

सेवा में--


माहोदय,

जैसा कुछ हो सका, आपका यह आना-पालन है, लीजे; भारतमाता की सेवा में इसे आप ही अर्पित कीजे । भेरी प्रभु से यही विनय है-स्वावलम्ब हम सबको दाजे, मों की इस सुख-दुःकया से सब पुत्रों का हृदय पसीजे।।

मैथिलीशदम