पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४२

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भारत-भारती उन सूत्र-ग्रन्थों का अहा ! कैसा अपूर्व महत्त्व है, अत्यल्प शब्दों में वहाँ सम्पूर्ण शिक्षा-तत्त्व है ।। इन ऋषि-नाणों ने सूक्ष्मता से काम कितना है लिया, आश्चर्य है, घर में उन्होंने सिन्धु को है भर दिया ! ।। ८८ ।। उस दिव्यदर्शन-शास्त्र में हैं न हमसे अग्रणी ? चूनान, यूरुर, अरव आदिक हैं हमारे ही ऋण । पाये प्रथम जिनसे जगत ने दार्शनिक संवाद हैंगोतम, कपिल, जैमिन, पतञ्जलि, व्यास और कणाद हैं।।८९ ।। १—(क) यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पीथागोरस दोनों ही, दर्शनशास्त्र के सम्बन्ध में भारतवासी हिन्दुओं के निकट सब तरह से ऋका हैं । मानियर विलियम्स । ( ख ) लेब्रिज साहब ने अपने इतिहास में हिन्दुओं के विषय में लिखते हुए बहुत ही दुराग्रह और पक्षपात का परिचय दिया है, किन्तु उन्हें भी माननी पड़ी है कि दर्शनशास्त्र के आदि गुरु