पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४६

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भारत-भारती ज्योतिष वृत्तान्त पहले व्योम का प्रकटित हर्म ने थर किया, वह क्रान्ति मण्डल था हम से अन्य देशों ने लिया । थे आय्यभट, आचार्य भास्कर-तुल्य ज्योतिविद् यहाँ, अब भी हमारे ‘मान-मन्दिर' बनीय नहीं कहाँ ? ।। ९५ ।। अङ्कगणित जिस अङ्क-विद्या के विषय में वाद का मुँह बन्द है, यह भी यहाँ ॐ ज्ञान-दवि की रश्मि एक अमन्दु है । हर कर कठोर कल से, वा सत्य के प्रति सेकहते अरब वाले अभी तक “हिन्दसा ही अङ्क से ।। ९६ ।। १- गौर वेवर और कोलक लाड ने इ सिद्ध कर दिखाया है किं चीन और 3 अरे ज्योतिष विद्या का विकाश भारतव मे ही हुआ है । हिन्दुओं का क्रनि.मण्डल उन्हीं की है। निस्सन्देह उन्हीं से अरद | वालों ने उसे लिया था । । २---(क) इस शक्ल में हिन्दू लोग संसार की स जातियों से बढ़ र हैं। मैंने अनेक भापा के अङ्गों के नाम को सूखा हूँ । परन्तु मैंने फिर जाति में भी हजर के रों के लिए कोई ना सई परयः । परन्तु हिन्दू लोगों में अट्ठारह अङ्क की संख्याओं तक के नाम हैं और सुबरूनी ।। ( ख ) दशमलव के सिद्धान्त के अनुसार अङ्क के रक्खे जाने के लिए | संसार हिन्दुओं को अनुगृहीत है और इस सिद्धान्त के न होने से गणित शरु का होना ही असभव था । पहले पहल अरब लोगों ने अङ्क लिखने