पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४८

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मर-भारत विज्ञान से भी फलित ज्योतिष' हो रहा अब सिद्ध है। यद्यपि अभिज्ञों से हुअर वह निन्द्य और निषिद्ध है ।। ९८।। भाई और ब्याण प्राचीन है जो है न, जिससे अन्य माषायें बनी; भाषा हमारी देववाणी श्रुति-सुधा से हैं सनी । है कौन भाषा थों अमर व्युत्पत्ति रूपी प्राण २ ? है अन्य-भोप- उसके सामने स्त्रियमाण-से । ९९।। १-मरावा ३ बी ० सूर्यनारायण राव बी. ए. व भारी ज्योतिषी हैं । अपडली बनाने की फीस ६ ००) तक आप लेते हैं । अपने विज्ञान से फालत ज्योतिष की सत्यता सिद्ध कर दी है। जिसका अभास सरस्वती के बारहवें भाव की बार सन्था में फलित ज्योतिष शामक निबन्ध में दिये गय है । ३- (क) इज़ले सरह अपने एक लेख में लिखते हैं कि संसार | ी प्रचलित भावों में कोई भी इतनी पूर्ण नहीं है जितनी कि संस्कृत । इतने. शओं के धातुओं ( Roots ) का पता साझ सारू रीति | किसी भी में नहीं मिलती हैं जितना कि संस्कृत में । (व) ४ायटर वैत्यंटाइन हव खिले हैं कि संस्कृत ही समस्त भाषाओं की जननी है। | (1) डब्ल्यू सो, टेलर हिय की राय है कि संस्कृत की समत, | संसार की नई भोध न कर सकती है यूरोप की तमाम भाषा, |ज्जिकों हम C1:13i कहते हैं, इससे निकली हैं ।। | (घ) यूरोप में, इस शताब्दी में एक बड़ी भारी बात यह जानी गई है कि किसी भाष्ा में जो लाखे शब्द होते हैं उनकी व्युत्पत्ति झा पता बहुत औ; से मूल शब्दों से लगाया जा सकता है। भारतवर्ष में, ३००० वर्ष हुए कि पाणिनि के समय के पहले यह बात जानी जा चुकी थी और इस अड़े याकरण ने अपने समय के संस्कृत शब्द की व्युत्पत्ति भी की थी । आर. सी. इस ।