पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४९

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अतोत् खड़े निकला जहाँ से अधुिनिक वह भिन्न-भाषा तत्व है, रखती न भाषा एक भी संस्कृत-समान महत्व है । पाणिनि-सदृश वैयाकरण संसार भर में कौन है ? इस प्रश्न का सर्वत्र उत्तर उत्तरोत्तर मौन हैं ।। १८० ।। वैद्यक उस वैद्यविद्या के विषय में अधिक कहना व्यर्थ है, सुश्रुत, चरक रहते हुए सन्देह रहना ठय है ।। अनुवादकतो आज भो उपहार उनके पा रहे, हैं आर्य युद के सब देश सद्गुण गा रहे ।। १०१ ।। }--() प्रोफेसर मैक्समूलर साहय लिखते हैं कि केवल हिन्दुओं और यूनानियों में व्याकरणशास्त्र की उन्नति की । परन्तु यूनानियों ने व्याकरण में जो सफलता प्रा की, वह पाणिनि के, जो कि सार भर में सब से बड़े बैंयाकरण हुआ हैं, ग्रन्थ के आगे कुछ भी नहीं है । (ख) यह संस्कृत विद्या का ही ज्ञान था जिससे कि इस शताब्दी के यूरोप के विहान ने अश्र्य भाषा तत्व को निकाला और गैप और असाध्य तथा बहुत से अन्य विनि ने अर्थ भाषाओं के शब्दों की व्युत्पतिं उसी भाँति की जैसे कि पाणिनि में संस्कृत भाषा की व्युत्पत्ति आर्यों के इतिहास के उस पूर्वकाल में की थी जब छि एथेन्स और रोम जाने नुह गये थे ! भार, सी, दुग्छ । २-(क) इन ग्रन्थ के नाम दूसरे देशों में भी प्रसिद्ध हुए और आठवीं शताब्दी में, हारूद के समय में, इन ग्रन्थों के अनुवाद में अरब लोग परिचित थे । एक सब से प्राचीन अर-अन्यकार सेरापिझ्न चरक को जरक' के नाम से लिखता है । एक और अरब-ग्रन्थकर एविसेना उसे ‘सिरक' के नाम से बताता है और राजेज़ जो कि एक्सेिना के पहले हुन्न है, उसे सुरक' के नाम से लिखता है। आर, सई, इत्त ।