पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/५५

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अतीत खण्ड भू-गर्भ से जब तब निकलती वस्तुएँ ऐसी यहाँजे पुछ उठती हैं कि ऐसी थी हुई उन्नति-कहाँ ? १६ १०९ ।। वह सिन्धु-सेतु बचा अभी तक, दुझिष्ण मन्दिर वचे ? । कब और किसने, विश्च में, शिप-चिन्न कहाँ रचे ? वह उच्च यमुनास्तम्भ लेहस्त-युक्त निहार लो, प्राचीन भारत की कला-कौशल्य-सिद्धि विचार ले ।। ११०।। ऋ० ७, मं० ७ खु० १५ ऋ० १४, मं० ७ सू० १५ ऋ०१ आदि में लोहे के नगरों आदि का भी वर्णन हैं जिससे हम लोगों को बड़े मजदूत किले समझने चाहिए । अ५. सी. दत्त । (ख) भारतवासी शिल्प में बड़े चतुर थे जैसा कि स्वच्छ वायु में रहनेवाले और बहुत ही उस जल पीने वाले लोगों से अशा की जा सकती हैं। भेगस्थनीज़ । | 8 कुतुबमीनार ।। १-कुतुबमीनार के पास जो लोहे की अद्भुत खम्भा है, उसके विषय में डाक्टर फरगुसन लिखते हैं । “यह हमारी अखि खोले कर दिनई सन्देह के बतलाता है कि हिन्दू लोग उस समय में लोहे के इतने बड़े खम्भे नाते थे जो कि योरप में बहुत इधर के समय में भी नहीं बने हैं और जैसे कि अब भी बहुत कम बनते हैं । और इसके कुछ ही शताब्दी उपरान्त इस लाट के बराबर के खम्भों को कदरक के सर में धरन की भाँति में हुए मिलने से हम विश्वास कर चाहिये कि वे लोग इस धातु का काम बनाने में अपने बाद के कारीगरों की अपेक्षा व दक्ष थे और यह बात भी कम आश्चर्यजनक नह है कि १६०० बुध हवा और पानी में रह कर उसमें अब तक भर भोर नहीं लगा है। और उसका सिर तथा खुदई डु लेख अब तक भी वैसा ही स्पष्ट और वैसा ही गहरा है जैसा कि बह ३:०० वर्ष पहले बना गया था।”