पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/६१

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अतीत स्वरुद्ध शङ्का न थो, जब जब समर का साज भारत ने सजाजावा, सुमात्रा, चीन, ङ्क अब कहीं डंका बजा१ ।।१ २९}} भाई विदेशी चोर भी जिस वरता के गान से, जिस घर बने हैं ग्रन्थ से और जश्थान-से । थी उष्णता दृह उस हमारे शेष शोशित की अहा ! जो था महाभारत-समर में नष्ट होते बच रहा ।।१३०॥ रक्ष यवन साम्राज्य के भी राजपूत रहे यहाँ, पड़तो कठिनता थी जहाँ जाते वही तो थे वहाँ । नृप मानन्कृत काबुले-विजय की बात सबका ज्ञात है, दृढ़ता शिवाजी के निकट जयसिंह की विख्यात है ।।१३१।। क्षत्राणियाँ भी शत्रु से हैं यहाँ निर्भय लड़, इतिहास में जिनकी कथायें हैं अनेक भर पडू : १.--( क ) भारत महासागर और प्रशान्त महासागर जहाँ पर मिलते हैं, वहाँ पर सुभद्रा, जादा अः कई प हैं । यस अभय इन इंपों में हिन्दुओं का राज्य था । संस्कृत भाषा और हिन्दूधर्म ने यहाँ १र अपना अटले राज्य माल्या था । (द) सहाराज कनिष्क नै चीनदेश पर आक्रमण किया और चित्र पाई ! इल पर वन-सम्रा ने उनके पास अपने छके को जमानत के तौर पर रक्ला । इस चीन-रजकुमार के इर भी चीन में बौद्ध धस्से का बहुत प्रचार : ।। | () जिस समय गास्थनीज़ भारतवर्ष में था उस समय लङ में हिन्दुओं का है। राज्य था ।