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अतीत-खण्ड


प्राचीन भारत की एक झलक
समयावरण से पार करके ऐतिहासिक दृष्टि के,
जो देखते हैं आज भी इस पूकालिक सृष्टि के ।
तो दीखता है दृश्ये ऐसा भारतीय-विकाल का,
प्रतिविम्ब एक सोच हैं जो स्वर्ग या प्रकाश का ।।१४३।।

भारतभूमि

ब्राह्मी-स्वरूपा, जन्मदात्री, ज्ञान-गौर-शालिनी,
प्रत्यक्ष लक्ष्मीरूपिण, धन-धान्य-यु,धालिनी ।।
दुद्धी रुद्राणां स्वरूप शत्र-सृष्टि-लयङ्कर,
वह भूमि भारतवर्ष की है भूरि भावे से भरी ।।१४४।।

में ही नगर, वन, शैल, नदियाँ जो कि पहले थी यहाँ--
हैं आज भो, पर आज वैली जान पड़ती हैं कहाँ ?
कार कदाचित है यहो-~-बदले स्वयं हम आज हैं,
अनुरूने हो अपनी दशा के दौखते सब साज हैं ।।१४५।।

भवन

चित्रित घने से होड़ कर ज? 5यम में फहरा रहे---
बे केतु उन्नत भन्दिरों के किस तरह लहरा रहे !
इद मन्दिरों में से अधिक अब भूमि-तल में दो गये,
अवशिष्ट ऐसे दीखते हैं-अब ये था तब गये ! ।।१४६।।
जलवायु

पीयूष-सम पीकर जिसे होता' प्रसन्न शरीर है,
अलस्य-नाशक, बल-विकाशक उस समय का नीर है।