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भारत-भारती


है आज भी वह, किन्तु अब पढ़ता न पूर्ण प्रभाव है;
यह कौन जाने नीर बदला था शरीर-स्वभाव है ? ।।१४७।।

उत्साहपूर्वक दे रहा जो स्वास्थ्य वा दीर्घायु है,
कैसे कहें, कैसा मनेरम उस समय का वायु है ।।
भगवान जाने, आज कल वह वायु क्लता ही नहीं,
अथवा हमारे पास होकर वह निकलता ही नहीं ?।।१४८।।

प्रभात

क्या ही पुनीत प्रभात है, कैसो चमकती है महो;
अनुरागिण ऊपा सभी के क्रम में रत कर रही ।
यद्यपि जाती है हमें भी देर तक प्रति दिन वही,
पर हुन अविध निद्रा-निकट सुनते कहाँ उसकी कही ?।।१४९।।

गङ्गादि नदियों के किनारे भीड़ अवि पाने लगी,
। मिल कर जल-ध्वनि में लवनि अमृत बरसाने
सरवर इयर अति-मन्त्र हरी, उधर जल-लहरी अहा !
तिस पर उभङ्ग को तरङ्ग, स्वर्ग में अब क्या रहा है।।१५०।।

सुस्नान के पीछे यथाक्रम दान की बारी हुई,
सर्वस्व तक के त्याग की सानन्द तैयारी हुई !
दानी बहुत हैं किन्तु याचक अल्प हैं उस काल में,
ऐसा नहीं जैसी कि अव प्रतिकूलता है हाल में ?।।१५१।।

दिन कर द्विजों से अध्ये पाकर उठ चला आकाश में, | u noff अव स्व-व-प्रकाश में ।