पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/७

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प्रस्तावना


करने की चेष्टा भी कहा । इसके कुछ ही दिन बाद उक्त राजा साहब का एक कृपा-पत्र मुझे मिला, जिसमें श्रीमान् ने मौलाना हाली के मुसद्दस को लक्ष्य करके इस ढ़ङ्ग की एक कविता-पुस्तक हिन्दुओं के लिए लिखने का मुझसे अनुग्रहपूर्वक अनुरोध किया । राजा साहब की ऐसी अभिरुचि देख कर मुझे हर्ष तो बहुत हुआ, पर साथ ही अपनी योग्यता के विचार से संकोच भी कम न हुई । तथापि यह सोच कर कि बिलकुल ही न होने की अपेक्षा कुछ होना ही अच्छा है, मैंने इस युतक के लिखने का साहस किया है।

श्री रामनवमी लं० १९६८ में आरम्भ के भगवान् की कृपा से आज मैं इसे समाप्त कर सका हूं। बीच बीच में, कई कारण है महंभ इसका काम रुका रहा । इससे इसके समान होने में इतना विलम्ब हुआ है ।

मैं नहीं जानता कि मैं अपने पूज्यवर श्रीमन पंडित महावीरप्रसाद व्दिवेदी जी महाराज और मानन५ श्रीयुक्त “वार्हस्पत्य" जी महोदय के निकट उनकी उन अमूल्य सम्मतियों के लिए, जिन्होंने मुझे इस विषय में कृतार्थ किया है, किस प्रकार अपनी कृतज्ञता प्रकट करूं सुहृदुर श्रीयुक्त पण्डित पद्म सिंहजी शर्मा, राय कृष्णदासजी और ठाकुरतिलकसिंहजी का भी मैं विशेष कृतज्ञ हूं, जिन्होंने मेरा उत्साह बढ़ा व मुझे सहायता दी है । हाटी और फी के मुसः सों से भी मैंने लभ उठाया है, इसलिये उनके प्रति भी मैं हाकि कृतज्ञता प्रकट करता । जिन पुत और लेखों से इस पुस्तक के नोट उद्धत किये ये हैं इनके लेखक के निकट भी मैं विशेश् उपकृत हूँ ।

मुा दुःख है कि इस पुस्तक में कई कई मुझे कुछ कड़ी बाते लिखनी पड़ी हैं। परन्तु मैंने किसर की निन्दा करने के विचार से कोई