पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/७३

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५ अतीत खेड ३ राज्ञा देखे, महीपति उस समय के हैं प्रजा-पालक सभी, रहते हुए उनके किसी को कष्ट हो सकता कमी १ किस भाँति पाठ कर, न यदि वे न्याय से शासन करे, जो वे अनीति कर कहीं तो वेन की गति से मरे २३१७९।। अनिवार्य शिक्षा । हैं खोजने से भी कहीं द्विज मूरू मिल सक नहीं, अनिवार्य शिक्षा के नियम हैं जो कि हिल सकते नहीं । यदि गाँव में द्विज एक भी विद्या ३ विधिपूर्वक पढ़ - तो दण्ड दे उसको नृपति, फिर क्यों न यो शिक्षा बढ़३7१1१८०}} १-यदि राज पवित्र नियमानुसार शासन करता है तो वह अपनी प्रजा झे अय-धन का छठवाँ रा ले सकता है अन्यथा नहीं ) । बशिष्ट । २---चेन क इ अत्याचारी ज्ञ! था । उसने अपने राज्य में घोषणा करव। दी थी कि “न यर्थ न दात न होत ; चिन्” अर्थात् मेरे राज्य में कोई जि न यज्ञ करे, न दाद कई और न ईकर का आराधन करे । इस कठोर और अनुचित आदेश को सुन कर तमाम ऋषि और मुनि उसके पास गये और उसे बहुत कुछ समझाया; किन्तु उसने एक भी न सु भी । वह यही कहता र किं यज्ञपुख्य कौन है ? ज कुछ है जब बहुत समझाने पर मैं इसे न माना तब वह मार डाला गया है। श्रीमद्भागवत । . ३–१ज उस गाँव को दण्ड ई, जिसमें ऋण लोग अपने धर्म के पालन नहीं करते, वे नहीं जानते है भिक्षा भाँग कर रहते हैं: " क्योंकि, ऐसा गाँव लुटेरों का पोषण करता है । ३४ ।