पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/८

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भारत-भारती थत नहीं लिखी १ अपनी सामाजिक दुरवस्था ने वैसा लिखने के लिये सुशे विच्च किया है। जिन दोषों ने हमारी यह दुर्गति की है, जिनमें कारण दूसरे लोग इस पर हँस रहे हैं, क्या उनका वर्णन कड़े शब्दों में किया जाना अनुचित है ? मेरा विश्वास है कि जब तक हमारी बुराइयों की तीन भालोचना न होगी तब तक हमार ध्यान उनको दूर करने की ओर समुचित रीति से कुछ न होय ।फिर भी यदि भूल से, कोई बात अनुचित लिल गई हो तो उसके लिये मैं नम्रतापूर्वक क्षमा मार्थी हैं । मैं जानता हूं कि इच्छ पुस्तक को लिख कुए मैंने अधिकार चेष्टा को है । मैं इस काम के लिये अर्धया अयोग्य था । परन्तु जब तक भरे दिइन्द्र और प्रतिभाशाली कवि इस ओर ध्यान न दें और इस ढङ्ग ही दुसर? कोई अच्छी पुस्तक न निकले, तब तक, आशा है, उदार पाठक कॅरी धृष्ट को क्षमा करें ! विरगाँव क्ष ) जन्माष्टमी १९६९ । मैथिलीशरण गुप्त