पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारत-भारती बौद्ध काल भारत-गगन में उस समय फिर एक वह झण्डा उड़ा--- जिसके तले, आनन्द से, आधा जगत आकर जुड़ा । वह बौद्धकालिक सभ्यता है विश्व भर में छा रहो, अब भी जिसे अवलोकने को भूमि खोदी जा रही है। २०४।। वर्णन विदेशी यात्रियों ने उस समय का जो दिया, पढ़कर तथा सुन कर उसे किसने नहीं विस्मय किया ? बनते न विद्या प्राप्त कर ही वे यहाँ बुधव थेश्री भी यहाँ को देख कर करते सहा आश्चर्य थे ।।२०५|| तव भी कला-कौशल यहाँ का था जगत के हित क्षय, है फाहियान त्रिलोक जिसको मुग्ध होकर कह गया**यह काम देवों का किया है, मनुज कर सकते नहीं२-- दृग देखकर जिसके कभी श्रम मन कर थकते नहीं !।। २०६।। १-ईसा की पाँचत्र और दक्ष शताब्दी के बच समस्त मनुष्यजाति के आधे से अधिक लोग बौद्ध थे। आर. सी. दृत । --चवीं सदी के आरम्भ में काहियान नामक एक चीनी यात्री भारत में था । ३ पाटलीपुत्र पटना ) में कोई तीन वर्ष रह।। महाराज अशोक के बनवाये हुए, छः सात सौ वर्ष के टूटे फूट, राजप्रास: को देख कर उलू बइ दुःख हुआ। इस विषय में उसने अपने यात्रा-वृत्तान्त ॐ लिए हैं कि अशोक ने इस महल में देवता से अवश्य बनवाया या । इसकी वी दीवारें, भव्य इंश्र और दोश्टे बनाने मनुष्य की काम नहीं ।