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भारत-भारती


हिन्दूधर्म
ऐसे विरोध काल में भी जो कि सब विध वाम था---
अक्षुण्ण रहना एक हिन्दू-धर्म का ही काम थ' ।।
अथवा किसी के मेटने से सत्य मिट सकती कहाँ ?
घन घेर' पर सूर्य का अस्तित्व खो सकते नहीं ॥२११।।
हिन्दू
इस काल में भो हिन्दुओं में धीरता कुछ शेष थी,
निज पूर्वज को वीरता, गम्भीरता कुछ शेष थी ।
केली विशेष विलासिता था किन्तु थी कुछ भक्ति मी,
न घट चले थे किन्तु फिर मो शोष थी कुछ शक्ति मी १२१२।।

विक्रमादित्य

विक्रम कि जिनका आज भी संवत् यहाँ है चल रहा.. .
भुवों को ऐसे नृपां का उस समय भी बल रहा ।।
जिन अनेकों देश-हितकर पुण्यका किये गये;
जो शक यहाँ शासक बने थे सब निकाल दिये गये ।।२१३।।

नर-रूप-रत्नों से सज थी वीर विक्रम को सभा,
अब भी जब्त में जागती है जगमगी जिनकी आमा !
जाकर सुनो, जेन मानों आज म यह कह रहोम मिट गइ,
पर कोति मरो तब मिटेगी.जव मही ।।२१४।।