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अतीत खण्ड


आत्माभिमान
निश्चय यवन राजत्व में हो हम पतित थे हो चुके,
बल और वैभव आदि अपना थे सभी कुछ खो चुके ।।
पर यह दिखाने केा कि भारत पूर्व में ऐसा न था,
आत्मावलम्बी भी हुए कुछ लोग हममें सर्वथा ।। २३७ }} । महाराना प्रतापसिंह
रान प्रताप-समान तुच सी शूरवीर थहाँ हुए,
स्वाधीनता के भक्त ऐसे श्रेष्ठ और कहाँ हुए ?
सुख मान कर बरसे भयङ्कर सई दुःखों के सहा,
पर ब्रत न छेड़ा, शाह के बस तुर्क ही सुख से कहा ।।२३८।।

चितौर चम्पक ही रहः यद्यपि यवन अलि हो गये,
धम्म हल्दीघाट में कितने लुभट वलि हो गये ।
“कुले-सान जब तक प्राण तव तक, अहःहीं ।
वह नहीं,” मेवाड़े भर में वक्तृताएँ गूंजती ऐसी रहीं ! ! ।। २३९ ।।

विख्यात वे जौहर यहाँ के अज भी हैं लोक में,
हम मग्न हैं उन पअिनो-सी देवियों के शक में !
अायो-स्त्रियों निज धर्म पर मरती हुई डरती नहीं,
साद्यन्त सई सतोत्व-शिक्षा विश्व में मिलती यहाँ ११ ।।२४०।।

१-राजपूताने में, सतीत्व धर्म की रक्षा के लिए हज़ारों कि बीते जी चिताओं में जल गईं । इसको जौहर व्रत कहते हैं ।