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अतीत खण्ड


शासन किसी पर-जाति का चाहे विवेक-विशिष्ट हो,
सम्भव नहीं है किन्तु जो सवश में वह इष्ट हो ।
यह सत्य है, तो भो ब्रिटिश-शासन हमें समान्य है,
वह सु-व्यवस्थित है तथा अशा-प्रपूणे, बदान्य है ।। २४५ ॥

सम्प्रति सभी साधन में हैं सुलम आत्मविकास के,
पथ, रेल, तार मिटा रहे हैं सब प्रयास प्रवास के ।
प्राय: चिकित्सालय, मदरसे, डाकघर हैं सच कहीं,
बस, पास पैसा चाहिए फिर कुछ असुविधा है नहीं ।। २४६ ।।

सचमुच ब्रिटिश साम्राज्य ने हमके वहुत कुछ हैं दिया,
विज्ञान का वैभव दिखाया समय से परिचित किया ।
उससे हमारे काति का भी हो रहा उपकार हैं,
बहु पूर्व-चिन्हों का हुआ वा हो रहा उद्धार । ।।२४७ ।।

• हमारी दशा पर हाय ! अब भी ते नहीं निद्रा हमारी टटती, कैसी कुटेवे हैं कि जो अब भी नहीं हैं छूटती ।।
बेसुध अमो सक हैं, न जाने कौन ऐसा रन पिया ?
देखा बहुत कुछ किन्तु हनने सब विना देखा किया ! ।।२४८।।

हैं घट गये सम्प्रति हमारे चरित ऐम माथा,
कवि-झरना-सः जान पड़ती पुजा की वह कथा !
आश्चर्य क्या जो फिर हमें वह युक्ति-युक्त हुँचे नहीं,
छोटे दिलों में भी बड़ी बातें समा सकती कहीं : ।। २४९ ।।