पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/९३

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अतीत खण्ड (ग) हमारे पाठकों में से बहुतों में, धनुर्विद्याविशारद सव्यसाची रानी सुतान सिंह जी का नाम सुना होगा । माप क्षत्रियकुल में उत्पन्न हुए हैं। अाएका घराना छीमड़ी के राजवंश से सम्बन्ध रखता है। कीमी । ज्य की ओर से छीमड़ी के पास ही रहूपुर में आपकी जागीर है । आपके पिता का नाम भूपति सिंह जी और काकी का नाम केसरीसह १ था । आपका जन्म संवत् १९२० हुआ था। इस वर्ष की इम्र से काकी केसरी सह जी अपको गोदी में बिठला कर बन्ट्रक चलाकर और निशाना मारना सिखलाते थे । अभ्यास बड़ी चीज़ है। धीरे धीरे आप लक्ष्यवेध में पाङ्गत होने लगे । अध इस समय अप कोई तीस-पैंतीस प्रकार के प्रयोग करते हैं। जैसे, इधकारूप्रो, भयानक-वेध, अदृश्य-वेर, दललक्ष्य-दे, स-वेध,शब्द-बैध इत्यादि । अपने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे प्राचीन ग्रन्ध में दाण-त्रि की जिन अद्भुत कुरामात का उल्लेख है, जिन्हें लोग पौराणिक गप : समझते हैं, वे कपोल कल्पित कहानिंयाँ नहीं, वरन् सद सही हैं। आपके पुत्र का नाम शूरसह जी हैं । हर्ष की बात है कि वे भी इस विद्या में अपने पिता के समइने ही प्रर्वं?ण हैं । ( ४ ) ना सुल्तान सुइजी की तरह एक और भी अनुनिक अर्जुन हैं । अषका नाम है लल्लूभाई कल्याणजी शाह । आप भावनगर ( काठियावाद ) के रहने वाले श्वेताम्बरी जेन वैश्य हैं । अश्का जम्म सूत् १९३६ में हुआ था । जिन प्रयोगों को ना सुल्तानसिंजर करते हैं उन्हीं में प्रयोगों को अर्थ भी करते हैं । (ङ) अभी बहुत दिन नहीं हुए, दक्षिण में पुछ निशाने बाज़ था ! उस के भाई और लड़के भी अच्छा निशान लगते थे । ३ आमने सामने बन्दूक भर कर बड़े होते थे और एक ही साथ आश्र करते थे } पर दोनों । तरह की गोझियाँ बीच ही में रिस्पर दकः क ख जाती थी और पिठी होकर वाहने बाथै गिर पड़ती थी । इस प्रयोग में की गलती नहीं हुई। यह त एक मासिक पुस्तक के अधार र सरस्वती में प्रकाशित हुई थी । ।