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भारत में अंगरेज़ी राज

११४२ भारत में अंगरेज़ी राज फिर क्रो और उसके गुमाश्तों का व्यवहार सिन्ध के कारीग और वहाँ की प्रजा के साथ इतना असह्य हो गया कि सन् १८०२ - , में क्रो को आशा मिली कि दस दिन के भीतर सिन्ध छोड़ कर चले जाओ। इसके बाद सन् १८०७ में बम्बई के अंगरेज़ गवरनर ने फिर कम्पनी की ओर से एक एची सिन्ध भेजा । सिन्ध में कम्पनी अमीर गुलामअलीअमीर करमनली और का एतची अमीर मुरादअली उस समय सिन्ध के शासक थे । सिन्ध के अमीरों में प्रायः यह विचित्र प्रथा चली आती थी। कि कई कई भाई मिल कर प्रेम से एक साथ देश पर शासन करते थे । अंगरेज़ पलची की प्रार्थना पर अमीरों ने अब अंगरेज़ कम्पनी के साथ मित्रता की एक सन्धि कर ली, जिसमें लिखा था-- “यह सन्धि पीढ़ी दर पीढ़ी क़यामत के दिन तक कायम रहेगी और अंगरेज़ सरकार कभी सिन्व के अमीरों की एक फुट जमीन की भी इच्छा ना करेगी "इत्यादि। इस सन्धि में लिखा था कि अंगरेज़ सरकार और सिन्ध की सरकार दोनों एक दूसरे के शत्रुओं के विरुद्ध सच की एक दूसरे की मदद करेंगे। किन्तु गवनर जनरल १८० से न्धि को यह शर्त पसन्द न थी, इसलिए इस सन्धि पर हस्ताक्षर हुए अभी दो वर्ष भी न हुए थे कि सन् १८०8 में एक • D)* Itauzwjrom Your g Egyp, by V, J. Eastrick M. P, , 334.