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सिन्ध पर अंगरेज़ों का क़ब्जा़

सिन्ध पर अंगरेजों का कब्जा १९४७ सन्धि इसके बाद २६ जून सन् १८३८ को अंगरेज़ कम्पनी, महाराजा रणजीतसिंह और शाहशुजा इन तीनों के बीच सिन्ध क विरुद्ध ईि एक सन्धि हुई । इस सन्धि का ज़िक्र पहल अफ़ग़ान युद्ध के सम्बन्ध में किया जा चुका है। सिन्ध के प्रमोरों से इसमें कोई सलाह नहीं ली गई । फिर भी इस सन्धि में ऊपर ही ऊपर यह तय कर लिया गया कि सिन्ध के साथ अंगरेज़ जो भी व्यवहार करें शाहशुजा व रणजीतसिंह को कोई एतराज़ न होगा 1 इस सन्धि के विषय में इतिहास लेखक सर जॉन के लिखता है: “२६ जून सन् १८३८ की उस घड़ी से सिन्ध के अमीरों का सर्वनाश शुरू होता है । उस घड़ी से ही वास्तव में सिन्ध के अमीरों की स्वाधीनता ख़रम हो जाती है ।" उस समय तक जितनी सन्धियाँ सिन्ध के अमीरों के साथ की। जा चुकी थीं वे सब अब रद्द करार दी गई। अमीरों से अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने के लिए अंगरेज़ी ख़िर की मांग सेना सिन्ध भेज दी गई । सिन्ध के अमीरों से कहा गया कि इस सेना को अपने देश में से होकर अफ़ग़ानिस्तान ) जाने दो, कम्पनी के जहाज़ों के लिए जलाने की लकड़ी और मार्ग में सेना के लिए रसद इत्यादि का प्रबन्ध करोमार्ग के ख़ास ख़ास फिरते ग्रंगरेज़ी सेना के हवाले कर दो, और चूंकि यह युद्ध अफ़ग़ानिस्तान के पदच्युत बादशाइ शाहशुजा को फिर से गद्दी पर बैठाने के लिए किया जा रहा है और चूंकि पहले किसी समय