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भारत में अंगरेज़ी राज

१२०० भारत में अंगरेजी राज आदर करते थे। सर अलेक्जेण्डर बसें अपने यात्रा वृत्तान्त में लिखता है कि अमीर रुस्तम ख़ाँ ने बड़े प्रेम और आदर भाव के साथ वन्स और उसके साथियों का स्वागत किया। उसने अपने बूढ़े वज़ीर फ़तहमोहम्मद खाँ गोरी को अस्सी मीलपालकियों, घोड़ों और उपहारों सहित अन्र्स का स्वागत करने के लिए भेजा। तीन सप्ताह तक उसने अंगरेज पलची का अपनी राजधानी में रोक कर उसकी खूब खातिरदारी की और बड़ी बड़ी दावतें हुई । मीर रुस्तम खाँ के चरित्र के विषय में सर अलेक्जेंडर वर्क्स लिखता है कि उसकी बात चीत अत्यन्त सीठी थी, और वह स्वभाव से उदार, सुशील और सब पर विश्वास करने वाला मनुष्य था । मीर रुस्तम खाँ के साथ इससे पूर्व अंगरेज कम्पनी की यह स्पष्ट सन्धि हो चुकी थी कि सिन्धु नदी के दाईं ओर या घाई ओर अंगरेज कभी किसी भी स्थान या किले पर कब्ज़ा करना न चाहेगे । किन्तु अब अंगरेज़ों को अंफ़ग़ान युद्ध की सफलता के लिए भक्खर का किला लेने की आवश्यकता अनुभव हुई । यह ., किला सिन्धु नदी के बीच में एक टापू पर बना हुआ था । मीर रुस्तम खाँ ने पिछलो सन्धि को याद दिलाई । गवरनर जनरल ने लिखा कि केवल युद्ध के लिए कम्पनी को भक्खर के किले की । आवश्यकता है और बादा किया कि अफ़ग़ान युद्ध समाप्त होते ही किला मीर रुस्तम खाँ को वापस कर दिया जायगा। ईस्टविक लिखता है कि इस गम्भीर और स्पष्ट वादे पर ही किला अंगरेजों • Burnes' ivatel, vol, tit .