पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/११६

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सिन्ध पर अंगरेज़ों का क़ब्जा़

सिन्ध पर अंगरेज़ का क़ब्ज़ा १२०३ पड़ जायगा, उस समय तक के लिए मुलतवी कर दिए गए जिस समय तक कि सिन्ध में हमारा प्रभाव कायम न हो जाय, पृथ्व दूसरे शब्दों में जिस समय तक कि सिन्ध अंगरेजी सत्ता के अधीन न हो जाय 1 और इसी को हम मित्रता की सन्धि करना कहते हैं ।’’ सिन्ध के अन्दर व तेज़ी के साथ उसी प्रकार की साजिरी शुरू हो गई जिस प्रकार कि समय समय पर मीर अली मुराद भारत के अन्य समस्त राज दरबारों में की जा चुकी थीं । सीररुस्तम खाँ के एक छोटे भाई मीर अलीमुराद को चुपचाप मीर रुस्तम खाँ के विरुद्ध फोड़ा गया 1 भारत से बड़े बड़े अभ्यस्त कूटनीतिज्ञ इस काम के लिए सिन्ध के दरबारों में पहुँचे। धीरे धीरे २४ दिसम्बर सन् १८३८ को सन्धि के स्पष्ट विरुद्ध अंगरेजों ने मीर अलीमुराद का पक्ष लेकर बात बात में मीर रुस्तम ख़ाँ से झगड़ा शुरू किया। सिन्ध के अमीरों पर कई नए नए इलज़ाम लगाए गए । कहा गया कि हैदराबाद के अमीर मीर नसीर ख़ाँ ने मुलतान के दीवान सावनम को अंगरेजों के विरुद्ध कोई पत्र लिखा है। इसी प्रकार कहा गया कि मीर रुस्तम खाँ ने शेरसिंह को अंगरेज़ों के विरुद्ध ) पक पत्र लिखा है । इन पत्रों और इलज़ामों के विस्तार में हमें ) के -- - - - -

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== s es s s es • " Bvery step, ... , evey encroachment that could be made without bnzard was made and the wore violent aggressions, which obviously could not be innicted without risking an inopportune War, were suspended until our own influence shoteld be substituted in Sindhk in other Worls, antil Sindh was Teduced to a British dependeney, And his is what we call। making an alliance, " -Dry Ltaext frou Yeg , 7p. 253-54.