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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज अंगरेजो सेना विषय में भी सच बातें तय कर देगा और नए सन्धिपत्र पर आपके दस्तख़त भी करा लेगा, मैं अभी हैदराबाद की ओर न बढ़ेगा । । ८ फ़रवरी सन् १८४२ को मेजर ऊरम हैदराबाद पहुँचा। मेजर ऊटरम के कहने के अनुसार अमीरों ने युद्ध से बचने की इच्छा से अपनी मोहरें मेजर ऊटरम के हवाले कर दीं । किन्तु नेपियर बराबर अपनी सेना सहित हैदराबाद की ओर बढ़ता रहा । हैदराबाद के निकट बलूचियों में हैदराबाद की ओर खलबली मच गई । हैदराबाद के अमीरों ने मेजर ऊटरम से कहा कि श्राप अपना श्रादम भेज कर जनरल नेपियर को रोकिएनहीं तो बलूची प्रजा में बेचैनी बढ़ रही है। सन्धि के लिए हमारी मोहरें आपके हाथ में हैं। मेजर ऊटरम ने स्वीकार कर लिया और अपनी श्रोर एक से अंगरेज़ इस काम के लिए मोर नसीर खाँ के पास भेजा। मीर नसीर खाँ ने 8 फरवरी की रात को इस अंगरेज़ को एक तेज़ ट के ऊपर नेपियर के पास रवाना किया । १२ फरवरी को सिन्धी ऊँट वाले ने मीर नसीर खाँ को आकर सूचना दी कि ऊटरम के दूत के और जनरल नेपियर मेंमुलाक़ात होगई किन्तु जनरल नेपियर बजाय रुक जाने के अपनी सेना सहित हैदराबाद की ओर बढ़ने लगा। " मीर नसीर खाँ ने तुरन्त ऊटरम को इसकी सूचना दी। उसी दिन तीसरे पहर ऊटरम अमीरों से आकर ऊटरम के वाद मिला। ऊरम ने शपथ खाकर मीर नसीर ख़ाँ को विश्वास दिलाया कि जनरल नेपियर का पर विश्वास