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भारत में अंगरेज़ी राज

१२१६ भारत में अंगरेज़ी राज लिखता है कि एक बार जनरल नेपियर को भी अंगरेजों की विजय में सन्देह हो गया ।” मियानी के बचे हुए अनेक अंगरेज अफसरों ने बलूचिों की वीरता की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। करनत अमीरों के कारण वेडिटूटन लिखता स्थान पर - है कि एक केवल अंगरेजों की विजय पचास कदम के अन्दर चार सौ लाशें गिनी गई। किन्तु अंगरेजी सेना की संख्या इन बलूचियों से कहीं अधिक थी । बलूचियों की ओर कोई विशेष नेता भी न था । हैदराबाद के अमीर अभी तक कायरतावश या शान्तिप्रियताव किले के अन्दर बैठे हुए शान्ति के साथ समस्त मामले का निबटारा करने का स्वप्न देख रहे थे क्योंकि इस बीच मेजर ऊटरम बरावर अपने को अमीरों का दोस्त बता कर उन्हें यह समझा रहा था कि यदि 'श्राप शान्ति कायम रखें तो आपका राज आपके हाथो में पूर्ववत् कायम रहेगा। मीर नसीर खाँ मैदाम में पहुँचा, किन्तु अपने योधाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं, वरन् उन्हें समझा बुझा कर वापस करने के लिए। अन्त में इतिहास लेखक टॉरेन्स के अनुसार ६,००० * वीर बलूचियों की लाशों के ऊपर से १७ फरवरी की रात को मियानी के मैदान को तय * करते हुए विजयी अंगरेजी सेना ने अगले दिन सुबह हैदराबाद में प्रवेश किया । ,

  • Drgy Learscr tron htthe sy94, p, 353.

+ Torrens" btbrs in Asia. ete, on the Amird ot Sindh.