पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/१५६

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अन्य भारतीय नरेशों के साथ एलेनब्रु का व्यवहार

अन्य भारतीय मरेश के साथ एलेनड का व्यवहार १३३8 संधिया अंगरेज कम्पनी का बाज़गुज़ार न था । खम १८३२ की पालिमेण्ट की एक रिपोर्ट में दर्ज है-‘डीपप्र के अन्दर प्रवेला सधिया ही एक ऐसा मरेश है जिसने अभी तक अपनी ज़ादिरा स्वाधीनता क़ायम रक्खी है । उस समय तक अंगरेजी ग्रांर सींधिया के बीच जितनी सन्धियाँ हुई थीं उनसे महाराजा सींधिया की स्वाधीनता में कोई ग्रन्तर न पड़ता था, और न कम्पनी सरकार को महाराजा सधिया के शासन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार था । ७ फ़रवरी सन् १८४३ को महाराजा जद्दोजी सधिया की अचानक मृत्यु हो गई । जद्दोजी के कोई औौलाद ग्वालियर दरबार न थी । कहा जाता है, विधवा महारानी की का सुशासन घायु केवल ११ वर्ष की थी। महारानी ने समस्त ग्वालियर दरबार की सम्मति से अपने पक निकट सम्बन्धी भागीरथराब को, जिसकी आयु उस समय ग्राठ वर्ष की थी, गोद ले लिया। भागीरथराव जयाजीराब सींधिया के नाम से ग्वालियर की गद्दी पर बैठा । महारानी बालक जयाजीराय की छोर से रीजण्ट नियुक्कत हुई। किन्तु महारानी की आयु भी कम थी, इसलिए राज का समस्त प्रबन्ध दरबार के सुपुर्द किया गया । उस समय के ऐतिहासिक उल्लेखों से स्पष्ट है और स्वयं लॉर्ड एोमधु ने अपने

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