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अन्य भारतीय नरेशों के साथ एलेनब्रु का व्यवहार

अन्य भारतोय नरेनों के साथ एलेनषु का व्यवहार १२८8 कूटनीति और उसकी स्वार्थमय धूपिपासा को अच्छी तरह प्रकट ण किया है । लॉर्ड एलेनषु ने अपने १६ फ़रवरी सन् १८४ट के एक पत्र में बतलाया है कि यदि इस समय यह समस्त नई सन्धि सधिया राज को अंगरेज़ी राज में मिलाने का प्रयत्न करता तो उसे डर था कि अन्य भारतीय नरेश कम्पनी के विरुद्ध भड़क उठेगेइसलिए प एक नई सन्धि कर ली गई । ग्वालियर की सबसीडीयरी सेना की संख्या बढ़ा दी गई। उसके ख़र्च के लिए सींधिया से कई नए ज़िले ले लिए गए । विधवा महारानी के हाथों से सब सत्ता छीन ली गई। तय कर दिया गया कि जब तक महाराजा जयाक्षीय नाबालिग है, एक कौन्सिल राज का समस्त प्रबन्ध करे। कौन्सिल के के लिए अंगरेज रेजिडेण्ट की माताओं का मानना आवश्यक कर दिया गया । महारानी के लिए उसके अधि कारों के बदले में तीन लाख रुपए सालाना की पेनशन मंजूर कर दो गई। इस प्रकार कम से कम दस साल के लिए ग्वालियर राज का प्रबन्ध अंगरेज शासकों के हाथों में आ गया। जिन अन्य भारतीय मरेश के साथ लॉर्ड एलेनघ्र का व्यवहार उल्लेखनीय है, उनमें से एक कैथल का राजा था । कैथल पर क़ब्ज़ा कैथल सतलज के इस पार करनाल से ३० मील पर एक सिख रियासत थी जिसने दुर्भाग्यवश सन् १८०8 में कम्पनी सरकार के साथ मित्रता को सन्धि कर ली थी। कैथल के राजा की मृत्यु होगई, उसके कोई पुत्र न था। किन्तु रानो को गोद