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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेज़ी राज लेने का अधिकार था । लॉर्ड एलेनड ने फ़ौरन् तीन सौ सिपाहियों का एक दस्ता कैथल पर जवरदस्ती कब्जा करने के लिए भिजवा । दिया । एलेन लिखता है कि राजकुल के लोगों और दरबारियों ने अंगरेज़ी सेन को अकस्मात् अपनी राजधानी में देख कर सत्याग्रह शुरू कर दिया 1 इतने में आस पास की प्रजा शस्त्र लेकर राजधानी में जमा हो गई। उन्होंने अंगरेज़ी सेमा को मार कर पीछे हटा दिया । बचे खुचे अंगरेज सिपाहियों को करनाल लौट नाना पड़ा । यह घटना १० अप्रैल सन् १८४३ की थी। १४ अप्रैल को अठारह सौ नई सेना थानेश्वर में जमा की गई। १६ अप्रैल को इस सेना ने कैथल में प्रवेश किया । किन्तु मतका विक्टोरिया के नाम लॉर्ड पतेमधु के एक पत्र में लिखा है कि १५ तारीख़ ही को कैथत की सशस्त्र प्रजा विधवा महारानी का साथ छोड़ कर वहाँ से चल दी और कैथल दरबार के कुछ मन्त्री और नगर के कुछ व्यापारी , अंगरेजों की ओर चले आए। सारांश यह कि कैथल पर अंगरेज हैं कम्पनी का क़ब्ज़ा हो गया । इससे कहीं अधिक विशाल रा जिसमें लॉर्ड एलेनद्र ने अपने षड्यन्त्र रचने शुरू किएपंजाब का राज था । रणजीतसिंह की यु और पंजाब की सन् १३8 में महाराजा रणजीतसिंह मृत्यु हुई। रणजीतसिंह का एक पुत्र खड़गसिंह में अराजकता पंजाब का राजा हुआ। किन्तु रणजीतसिंह के मरते ही समस्त पंजाब में विद्रोहों, हत्याओं और अराजकता का