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भारत में अंगरेज़ी राज

१२६४। भारत में अंगरेज़ी रज जिससे अंगरेजों का कोई सम्बन्ध न था । महाराजा रणजीतसिंह के साथ कम्पनी की जो सन्धि हो चुकी थी उसमें अंगरेजों ने यह वादा किया था कि हम रणजीतसिंह के इस इलाके में किसी तरह का हस्तक्षेप न करेंगे । इतिहास लेखक कप्तान कनिलम लिखता है- "मेजर मॉडहुड की सय से पहली काररवाइ में से एक यह थी कि उसने यह एलान कर दिया कि लाहौर दरबार का वह इलाका, जो सतत के इस पार है, उतना ही अंगरेनों के संरक्षण में है जितना कि पटियाला और अन्य नरेशों के इलाक़ो; और यदि महाराजा दलीपसिंह की स्यु हुई या उसे तख़्त से उतार गया तो अंगरेज कम्पनी को इस इलाके के ज्ञधत कर दिया लेने का अधिकार होगा 1 इस बात की सूचना बाज़ाता सिख दरबार को नहीं दी गईकिन्तु सब को इसका पता था, ऑौर मेशर ब्रॉडलुट ने इसी पर अमत किया x & । इसके अलावा ( सतलज पर ) पुल बांधने के लिए जो किश्तियों बम्बई में तैयार कराई गई थीं वे सन् १८४५ की पतझढ़ में फ़ीरोज़पुर को ने और रवाना कर दी गई । मेयर गॉडफ्रेंट ने यह ज़ाहिर करने के लिए कि इन सब किश्तियों को हमले का डर है हुकुम दिया कि सिपाहियों की जबरदस्त गारवें हिफ़ाज़त के लिए फीरोज़पुर तक इन किश्तिों के साथ जायें।) किश्तिों के फ़हीरोज़ापुर पहुंचते ही उसने अपने आदमियों को पुल बनाने का अभ्यास कराना शुरू किया । इन सब बातों से उसने करीब करीब यह ज़ाहिर कर दिया कि युद्ध शुरू हो गया है ।'s • Cuninghans story of Ahe Stai, p, 297, et seq.