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भारत में अंगरेज़ी राज

१२८० भारत में अंगरेजी राज - स्मरण रहा । उसने शोग की पोशाक (कोरे सफ़ेद वस्त्र) धारण किए और अपने आस पास के सय सैनिकों को यह याद दिला कर कि गुरु ने युद्ध में मरने वाले वीरों से अनन्त सुख का वादा किया है, उसने बार बार उन्हें। अपने चारों ओोर जमा कर लिया और गुरु के नाम पर प्राण न्योछावर करने के लिये प्रेरित किया । अन्त में अपने इन्हीं देशबन्धुओं की लाशों के ढेर के ऊपर यह भी स्वयं शहीद होकर गिर पड़ा । प्रथम सिख युद्ध में सिखों की २२० तोर्ष अंगरेजों के हाथ लगीं । इनमें से ६० तोर्षों के विषय में गवरनर सिखों की तोप जनरल ने लिखा कि इतनी बड़ी तोपें उस समय यूरोप में कहीं भी मौजूद म थीं, उनकी मार अंगरेज़ी तोपों के मुकाबले में कहीं अधिक दूर तक जाती थी, पीछे को धक्का कम लगता था और चलाने के समय जितनी जल्दी अंगरेज़ी तोप गरम हो जाती थीं उतनी जल्दी ये न होती थी। सुबहँव की लड़ाई के बाद १२ फ़रबरी सन् १८६ को गवरनर जनरल हार्डि सतल पार कर लाहौर की ओर लाहौर दरबार के बढ़ां । मेजर ब्राँडपुट के पद पर इस समय मेजर साथ सम्धि साथ साम्य लॉरेन्स था जो बाद में सर हेनरी लॉरेन्स के नाम से विख्यात हुआ। लाहौर में देशद्रोही राजा गुलाबसिंह ने ! इस सुन्दरता के साथ समस्त प्रबन्ध कर रखा था कि मार्ग में किसी ने भी एक गोली अंगरेजी सेना पर न चलाई । फिर भी विलियम एडवर्डस लिखता है कि पजाब पर क़ब्ज़ा जमाने के लिए !

  • Ibid, 2, 327,