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भारत में अंगरेज़ी राज

१२८२ भारत में अंगरेजी राज अलग कर दिया गया । लालसिंह की भी सता समाप्त कर दी गई । बाद में उसे कैद करके देहरादून भेज दिया गया । दलीपसिंह । के नाबालिग रहने के समय तक के लिए आठ सरवारों की एक कौन्सिरस बना दी गई । तेजसिंह इस कौन्सिल का एक सदस्य रहा। यह तय कर दिया गया कि यह कौन्सिल अंगरे रेज़िडेण्ट की हिदायतों के अनुसार राज का समस्त प्रबन्ध करे। युद्ध के दण्ड रूप एक बहुत बड़ी रक़म लाहौर दरबार से वसूल की गई । दरबार की सेना का एक बड़ा भाग तोड़ दिया गया हैं और उसकी जगह कम्पनी को सेना पश्तव में नियुक्क की , जिसका ख़र्च लाहौर द्वार पर डाला गया। पश्ताव की स्वाधीनता का इस प्रकार श्रान्त करने के इनाम में गबरमर जनरल सर हेनरी हार्डि को ‘लॉर्ड’ हार्डि .की उपाधि और कम्पनी की ओर से असहाय को इनाम भारतवासियों के दिये हुये टैक्सों में से तीन हजार पाउण्ड सालाना की आजीवन पेनशन अता की गई। इस युद्ध में राजा गुलाबसिंह के विश्वासघात की याद में आज तक पताब के अनेक लोग 'जम्’ शहर ) जस्सू का नाम का नाम लेन अपशकुन समझते हैं, और उसे लेना अपशकुन ‘बड़ा शहरकह कर पुकारते हैं। गबरनर जनरल लॉर्ड हार्डिन के शासनकाल की शेष मुख्य -मुख्य घटनाएँ बहुत थोड़े में वर्णन की जा सकती हैं । शिवाजी के