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भारत में अंगरेज़ी राज

अनुसार लॉर्ड डलहौज़ी ने एक एक कर भारत के रहे सहे देशी राज्यों का खात्मा करना शुरू कर दिया। इनमें दो सब से बड़े राज्यपक्षाघ और वरमा थे, जिनमें सब से पहले हम पक्ष की कहानी संक्षेप में बयान करते हैं। लॉर्ड हार्डि अपने समय में पआब की अवस्था को देखते हुए पक्षाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लेने का है पक्षब में आसन्तोष सहस न कर सका था । फिर भो १६ दिसम्बर सन् १४६ वाली भैरोंवाल की सन्धि पर जिस प्रकार अमल किया जा रहा था उससे मालूम होता था कि पजाब के लोगों को भड़का कर दूसरे सिख युद्ध के लिए बहाने पैदा किए जा रहे हैं, ताकि अन्त में मौका पाकर पवाब की स्वाधीनता का अन्त कर दिया। जाय। सर फ्रेडरिक करी इस समय लाहौर का रेज़िडेण्ट था। उसके पत्रों से प्रकट है कि वह प्रारम्भ से ही बालक दलीपसिंह और सिख राज दोनों का शत्रु था । और दोनों को समूल नष्ट कर देना चाहता था। रेज़िडेण्ट की हैसियत से भैरोंवाल की सन्धि के अनुसार करी ही इस समय पंजाब का क्रियात्मक शासक था। राज के एक पक महकमें में उच्च और जिम्मेवार पदों से देशवासियों को निकाल कर उसने उनकी जगह अंगरेज भरती करने शुरू कर ! दिए । पंजाबियों में असन्तोष बढ़ने लगा और उन्हें यह सन्देह होने लगा कि अंगरेजों का इरादा महाराजा दलीपसिंह के बालिग हो जाने पर भी सन्धि की शतों के अनुसार पलाब का राज उसे सौंप देने का नहीं है, वरन् वे पझाव पर स्वयं पूजा करने की । T