पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२१०

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दूसरा सिख युद्ध

दूसरा सिख युद्ध १२ . 5 सन् १९४८ को मुस्तान पहुँचे। १४ अप्रैल को दीवान मूलरा ने शासम का भार बाज़ाता काहनसिंह के सुपुर्द क्रीतदास कर दिया। एगन्यू ने फ़ौरन नगर के सब काहनसिंह दरबाज़ों के ऊपर अंगरेज़ी गारद नियुक्त कर दी। उसी दिन नगर के करीब समस्त मुलतानी सिपाहियों को 3. बरखास्त करके उनकी जगह गोरे नियुक्त कर दिए गए । मुलतान के निवासी समझ गए कि शासन की बाग काहनसिंह के हाथों में नहीं, बल्कि वास्तव में विदेशियों के हाथों में चली गई । इन विदेशियों के विरुद्ध प्रसन्तोष समस्त पक्ष में बढ़ता जा रहा था । १६ अप्रैल ही को जब कि एगन्यू अपने घोड़े पर चढ़ रहा था, दो मुलतानी सवारों ने जिन्हें उसी दिन बरखास्त किया गया था, तेज़ी से नाकर पगन्यू पर वार किया । परन्यू बुरी तरह घायूल होगया किन्तु काइनसिंह ने फ़ौरा बीच में पड़ कर एगन्यू को ' मरने से बचा लिया। पगन्यू और एएडरसन के रहने के लिए नगर के बाहर एक ईदगाह तजवीज़ की गई । मूलराज नगर औोड़ मुलतान का संग्राम कर चला गया । किन्तु अनेक मुलतानी सिपा दे दियाँ ने, जो १8 तारीख़ को बरखास्त किए गए थे, २० अप्रैल की सुबह ईदगाह को आकर घेर लिया। गोी सेना के प्रतिरिक्त काहनसिंह के साथ एक हिन्दोस्तानी सेना भी थी । इस सेना के सब सिपाही अब मुलतानियों की ओर जा मिले, किन्तु उनके " सरदार अधिकतर काहनसिंह और उसके विदेशी सायियों की