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भारत में अंगरेज़ी राज

१३०६ भारत में अंगरेज़ी राज । इतना ही नहीं, बल्कि लॉर्ड डलहौजी का कथन है कि दोस्तमोहम्मद खाँ और उसके पठान सिखों को मदद तक दे रहे थे । हमें यह भी याद रखना चाहिए कि ठीक उसी समय बहावलपुर और अन्य स्थानों के हज़ारों मुसलमान दीवान मूलराज के झएडे के नीचे आ आकर जमा हो रहे थे। फिर भी यदि पहले सिख युद्ध में तेजसिंह और लालसिंह मौजूद थे तो दूसरे सिख युद्ध में शम्सुद्दीन और नूरुद्दीन मौजूद थे । हिन्दू या मुसलमानइसमें सन्देह नहीं कि अन्य भारत। , वासियों के समान पजावियों और विशेषकर उच्च और मध्यम श्रेणी के पजावियों का चरित्र उस समय बेहद गिरा हुआ था; राष्ट्रीयता के भाव का उनमें अभाव था, यही कारण था कि शासन की योग्यता, अपूर्व वीरता, युद्ध कौशल और साहस के होते हुए भी वे आपसंख्यक, कायर, अकुशलकिन्तु चालाक विदेशियों के एक दो झोंकों के सामने निस्सस्ख होकर गिर पड़े। मेजर ईवन्स बेल का मत है कि पंजाब में जो कुछ उपद्रव खड़े हो गए थे उनके कारण उन्हें न्त कर लेने के मेजर ईवन्स बेल बाद भी पंजाब को कम्पनी के राज में मिला के विचार लेने का डलहौजी को कोई अधिकार न था। उसका कथन है। - ‘सन् १८४६ के युद्ध के बाद ब्रिटिश भारत के साथ पक्षाब के भावी सम्बन्ध को तय करने में लॉर्ड डलहौजी की कारवाई बिलकुल इस प्रकार थी—एक आदमी रुपए के बदले में एक कष्टकर और ख़तरनाक जायदाद प्रबन्ध की जिम्मेवारी किसी नाबालिग मालिक की ओर से अपने ऊपर ले