पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२३२

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दूसरा बरमा युद्ध

दूसरा बरसा युद्ध १३११ फो इन दोनों गोरे अपराधियों का मुकदमा सुनने और उन्हें दण्ड देने का पूरा अधिकार था 1 इसमें कोई इलौी का का सन्देह नहीं हो सकता कि जो दण्ड इन्हें दिये गर हस्तक्षेप वे अपराध के मुकाबले में बहुत ही हलके थे । फिर भी कप्तान शेपर्ड और कप्तान लुई दोनों ने भारत पहुंच कर यम्पनी सरकार से शिकायत की । बरमा एक स्वाधीन देश था। भारत की कम्पनी सरकार को बरमी दालत के फैसले के बिल अपील सुनने का कोई अधिकार न था, किन्तु लॉर्ड डलहौजी बरसा के साथ छेड़ छाड़ का बहाना ढूंढ़ रहा था। उसने फ़ॉरनफ़ैसला कर दिया कि इन दोनों अंगरेज़ों को मिला कर 8१० पाउण्ड बतौर हरजाने के बरमा सरकार से दिलवाए जाएँ दे ३५० पाउंड यान शैपर्ड को और ५६० पाउण्ड कप्तान सुई को। हमें स्मरण रखना चाहिये कि इन दोनों से मिला कर बरसी दालत मे फेवल १७१ पाउण्ड दण्ड के बसूल किए थे, और वह भी इतने सहीन जों के लिये । सन् १८४० से उस समय तक जितना पत्र व्यवहार अंगरेज सरकार और वरम सरकार के दरमियान हुआ र के करता था वह तनासई के कमिश्नर की मारत युद्ध लिये अंगरेगी जहाज़ को रवानगी। " हुआ करता था । यह उचित या अनुचित मांग भी तेनासई के कमिश्नर की मारत ही यरमा दरबार तक पहुँचाई जा सकती थी 1 बात इतनी छोटी सी थी कि यदि इसके लिए किसी विशेष दूत की आवश्यकता भी थी तो कोई ८३