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भारत में अंगरेज़ी राज

१३१९ भारत में अंगरेजी राज भी सिविल अफ़सर काफ़ी हो सकता था। किन्तु लॉर्ड डलहौज़ी का उद्देश कुछ और ही था । फ़ौरन् विना बरमा दरबार के साथ किसी तरह का पत्र व्यवहार किए या कुछ पूछे गिने दो अंगरेजो युद्ध के जहाज़ कमाण्डर लैम्बर्ट के अधीन यह 8१० पाउण्ड बरमा दवार से बस्सूल करने के लिये कलकत्ते से रखून भेज दिये गए। इन जहाजों में से एक का नाम ‘फॉक्स' ( अर्थात् लोमड़ी ) और दूसरे का नाम ‘सरपेण्ट’ ( अर्थात् साँप ) था । युद्ध के जहाज़ों का रचून भेजना ही एक प्रकार से युद्ध छेड़ना था । कमाण्डर लैमवटखे के हाथ एक पत्र बरमा के महाराजा के नाम भेजा गया और लैम्वर्ट को यह हिदायत कर दी डलहौजी की गई कि यदि रंगून का बरमी शासक अंगरेज़ हिदायतें सरकार की माँग को पूरा न करे तो वह पत्र महाराजा के पास भेज दिया जाय । इस युद्ध के सम्बन्ध के पाति मेण्ट के कागजों में साफ लिखा है कि कमाण्डर लैम्बर्ट के नाम लॉर्ड डलहौजी की प्रकट हिदायतें कुछ और थीं और उसे गुप्त ज़बानी हिदायतें कुछ और दी गई । नवम्बर सन् १८५१ के अन्त में कमाण्डर लैम्बर्ट अपने दोनों जहाज़ों सहित रंगून पहुँचा । पहुँचते ही उसने y अंगरे बाशिन्दों रंगून के अंगरेज़ वाशिन्दों से, जिनमें से अधिक की शिकायतें सर व्यापारी थे, रंगून दवार के विरुद्ध अनेक शिकायतें जमा कीं। २७ नवम्बर को उसने रंगून के बरमी शासक के पास एक अत्यन्त धृष्टतापूर्ण पत्र भेजा । २८ नवम्बर को उसने