पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२४०

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दूसरा बरमा युद्ध

इस बरमा युद्ध १३१६ ‘उसे पुन्ह कहा ही नहीं जा सकता । शु, की अपेक्षा से चिब, प्ररोग्राम या एक यला कहना शधिक उचित होगा ।"a के युद्ध के दिनों में निरपराध बरमो प्रजा का ब्रूय संचार किया गया और खूब रूट खसोट हुई। अन्त में बचमी फाम्राज्य का सब से अधिक उपजाऊ औौर विशाल प्रान्त पगू' से प्राचीन पुस्तक में स्वर्ण भूमि’ कहा गया है, जिसमें पृथ्वी के ऊपर धन ही धन और पृथ्वी के नीचे असंख्य खोने की कारें छिपी हुई थीं, घरमा के बौद्ध महाराजा से छीन कर कम्पनी के भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया। यही लॉर्ड डलहौजी और उसके साथियों की हार्दिक कामना थी। दिसम्बर सन् १८५२ में यह प्राम्स अंगरेजों के शासन में नाया 1 ५० वर्ष के अंगरेजी शासन ने उसे संसार के सब से अधिक धनसम्पन्न प्रदेशों श्रेणी से गिरा कर सय से अधिक को , निर्धन देशों की श्रेणी में पहुँचा दिया । फॉबडेन ने इस युद्ध के कारणi, उसको प्रगति औौर उसके परिणाम के विषय में बड़े मार्मिक शब्दों में फॉयडेन के विचार लिखा है- “ये शुद हिन्दोस्तामियों के खर्च से चलाए जाते हैं ।” “ मैं यंगाल 1 के अर्धनग्न किसानों को कप्तान शैपई और कप्तान लुई के के दाों की यसूली । से क्या विशेष लाभ था, कि इन दावों के कारण जो युद्ध शेट्रा हो गया उसका सच ख़र्च इन किसानों के सर पर डाला जाय ?। • 'A war it can hardly be callet. A rout, a m३९९act, or s visitation । would be A more afropriate term."-], . 9s.