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१३३५
डलहौज़ी की भू-पिपासा

डलहौजी की भूपिपासा १३३५ तालुका और गौरकई तालु ग्रंगरेज़ कम्पनी को प्रदान कर दिए।

  • + सन् १७६३ में नवाब ने चिहत्तपुट की जागीर, जिसकी प्रामदनी

उस समय १८ लाख रुपये सालाना थी, अपने मित्र अंगरेजों को दे दी। इन तमाम इलाकों के लिए कम्पनी के नाम मघाब के दरबार से यानाब्ता समर्द जारी की गई। इसके बहुत समय बाद तक अंगरेज़ कम्पनी करनाटक के नबाब को इन इलाकों के लिए बिश देती थी और बहाँ पर रहने वाले अंगरेज़ अपने को नबाघ को प्रक्षा कहते थे । नवाब मोहम्मद अली अन्य भारतीय मरेशों के विरुद्ध अंगरेज का सदा मददगार रहा । फिर भी मोहम्मट्यूली के बेटे उदतुलउमरा की मृत्यु पर करनाटक का बहुत सा इलाक़ा और नघाव के अनेक अधिकार ज़ बरती कम्पनो ने अपने हाथों में । लिए । किंतु सन् १८०१ की खन्धि में भी कम्पनी और गवाघ करनtटक का यह नाम मात्र का सम्बन्ध कायम रखना गया। सन ड १८५५ के अक्तूबर मास में नवाब मोहम्मद गौस का देनान्त हुआ जा औौर उसके उत्तराधिकारी अज़ीम जाह को अंगरेजों ने नयाय स्वीकार करने ही से इनकार कर दिया 1 मद्रास के गवरमर लॉर्ड हैरिस ने लॉर्ड डलहौजी को लिखा कि 'करमाटक के नवाब की ( सत्ता केवल एक दिखावटी तमाशा है, किन्तु किसी भी समय यह हमारे विरुद्ध विद्रोह और नान्दोलन का एक केन्द्र बन सकती हैं । इस लिए इस तमाशे को जारी रखना अब युद्धिमत्ता नहीं है ।' इत्यादि। डलहौजी ने हैरिस की राय को पसन्द किया । फरनाटय फा t: .