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डलहौज़ी की भू-पिपासा

डलहौजी की भू-पिपासा १३३७ रॉबर्ट नाइट ने सन् १८८० में लिखा था कि सन् १८५१ के ) क़रीब अंगरेज़ सरकार की प्रधान नीति यह थी कि जब भी मौका मिल सके देशी रियासतों की संरक्ग्रा को कम किया जाय श्रेर हैदराबाद और अवध के नाश में यदि देरी हुई तो केवल पक्षाघ और बरम के युद्धों के कारण हुई । सन् १८०० की सन्धि के अनुसार हैदराबाद के निजाम को सबसीडीयरी सेना के खर्च के लिए एक बहुत सबसीडीग्री सेना बड़ी रकम प्रति वर्ष कम्पनी को देनी होती थी। देने से इनकार बरार का प्रान्त दूसरे मराठा युद्ध के बाद नागपुर के राजा से छीन कर निज़ास को दे दिया गया था । उस समय से बराबर बरार के अन्दर निजाम के विरुद्ध उपद्रव ले श्नाह थे । कहा जाता है कि बरार के हिन्दू देशमुख्य प्राय: निज़ाम के बिगल बिद्रोह करते रहते थे। इतिहास लेखक लॉयरल लिग्नता है कि घरार के शहरों में आए दिन ही हिन्दू और मुसलमानों में झगड़े होते रहते थे, किन्तु ये झगड़े निजाम के शेप राज में और कहीं सुनने में न जाते थे । इन उपद्रयों को शान्त करने के लिए गवरनर जनरल ने सबसीडीयरी देने से इनकार कर सेना 3 ( दियायद्यपि यह सेना वास्तव में निज़ाम ही की सेना थी, निज़ाम ही के खर्च से रक्खी गई थी, और जिस सन्धि नेता यद सेना निज़ाम के इलाके में रपखी गई थी, उसमें यह साफ़ दर्ज था। है कि इस सेना का उद्देश मिज़ाम के इलाके में शान्ति कायम रमुना ।

  • Te Stattai, Jall 1, 1880 x 62.