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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४० भारत में अंगरेजी रोज इस प्रकार परिचय कराने का रिवाज भारत में न था। अवध नरेश कमाण्डरइन-चीफ़ का मतलब न समझ सका। वह यह समझा ' कि कमाण्डरइन-चीफ़ अपनी बीवी को नबाव के हाथों बेचना चाहता है । निस्सन्देह अवध के नवाब को इस तरह का सौदा रुचिकर न हो सकता था। थोड़ी देर के बाद उसने अपने मुलाजिमों से कहा-‘काफ़ी हो चुका ! इस औरत को यहाँ से हटाओ !’ g अंगरेजों और वध का इतिहास पूर्व के कई अध्यायों में दिया जा चुका है । उसे यहाँ पर संक्षेप में दोह अवध के नवाब राना अप्रासद्दिक न होगा1 आरम्भ में अवध का वनर राज विशाल मुगल साम्राज्य का एक अंग था। अवध के नवाब दिल्ली सम्राट के पैतृक वज़ीर समझे जाते थे । धीरे धीरे मुगल साम्राज्य की निर्बलता के अन्तिम दिनों में अवध नरेश वहुत दजे तक उस साम्राज्य से स्वतन्त्र होते चले गए । कम्पनी के साथ अवध के नवाब का सम्बन्ध सन् १७६४ में प्रारम्भ हुआ । आरम्भ में अवध के नवाब को कम्पनी और कम्पना और अपनी सल्तनत की रक्षा के लिए सल्तनत के नवाब अवध का। अन्दर कम्पनी की सेना रखने की सलाह दी गई। इस सेना के खर्च के लिए सोलह लाख रुपए वार्षिक नवाब से लिए जाने लगे । धीरे धीरे इस सबसीडीयरी सम्बन्ध

  • . : Za and Opitior General Str Charlarlane Wantaw, , C. 8.,

<by Licutenant-General Sir W, Napiei, K C, ., 2nd Edition 1857. voi, , P, 296.