पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३४१
डलहौज़ी की भू-पिपासा

डलद्दोजी की :पिपासा १३४१ सेना की संख्या बढ़ने लगी । उसके खर्च के लिए रकम भी बढ़ती ) चली गई। यहाँ तक कि इस विशाल सेना के के पूर्व के लिए संदेल- खण्ड औौर दोनाय का इलाका, जिसकी बचत उस समय दो करोड़ रुपए सालाना थी, नवाघ से ले लिया गया। सन् १८०१ में अवध के नवाब और कम्पनी के बीच फ ौर नई सन्धि हुई, जिसमें अंगरेजों ने वादा किया की सन्धि १८०१ का साथ कि नबाब का शेष समस्त राज पीढ़ी दर पीढ़ी उसके शासन में कायम रहेगा और ग्रंगरे उसमें कभी किसी तरह का दख़ल न देंगे । किन्तु इसी सन्धि की एफ धारा यद भी थी कि “अंगरेज सरकार नचाय वज़ीर के समस्त इलाफ की बाहर के आक्रमणों औौर भीतर के विद्रोहों से रक्षा फरने का चांदा करती है ।' यास्तव में यही धारा अवध की समस्त भाधी मुसीबत को जड़ साबित हुई । इसके बाद समय समय पर भुगज गचरमर जनरलों ने अपने भारतोय युद्धों के लिए करोड़ों रुपए, फभी यतीर ग्रवध से दूर ज़ों । फ़र्ज़ के और कभी बतौर सहायता के , श्रावध के नवाब से वसूलेकिए । असंख्य ग्रंगरेज शासक पृौर अफसरों की Y व्यक्तिगत आर्थिक कठिनाइर्यों को दूर करने के लिए भी वध के के ने ने समय समय पर कामधेनु का काम दिया। वास्तव में अवध और करनाटक इन दो राज्यों से धन जूस जूस कर ही अधिकतर कम्पनी के बाल साम्राज्य ने भारत में अपने शरीर को इष्ट पुष्ट किया।