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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४२ भारत में अंगरेजी-रातः -आए दिम की नित्य नईमाँगों के कारण अवध के नवाब की आर्थिक कठिनाई बढ़ती चली गई । एक अंगरेज अंगरेज़ों का रेजिडेण्ट लखनऊ के दरबार में रहने लगा। आनुचित हस्तक्षेप शासन के छोटे से छोटे मामलों में नित्य नए हस्तक्षेप होने लगे । कई छोटे छोटे इलाक़ों का शासन नवाबः से कह कर अंगरेज़ अफ़सरों को सोप दिया गया। इन अंगरेज़ अफ़सरों ने स्थान स्थान पर अपने कानून जारी कर दिये1 इस अनुचित हस्तक्षेप के कारण प्रजा में दुख और दारिद्रय बढ़ने लगा । नवाब ने प्रजा की दशा सुधारने के अनेक प्रयल किये। हर बार कम्पनी के प्रतिनिधियों ने इन प्रयलों को सफल होने से रोक लिया । अवध के शासन में कम्पनी के प्रतिनिधियों के इस अनुचित हस्तक्षेप और उसके परिणामों को वर्णन करते हस्तक्षेप के ने * हुए सरहेनरी लॉरेन्स लिखता है रिणाम ‘हमारे भारतीय इतिहास में अवध का आध्याय हमारे लिए एक कलझकर अध्याय है। उससे हमें यह भयहर चेतावनी मिलती है कि जो राजनीति एक बार धर्म अधर्म के सीधे नियम को छोद कर उसकी जगह क्षणिक उपयोगिता या अपने विचार अनुसार ‘अपने के राष्ट्रीय हित' की दृष्टि से काम करने लगता है तो वह किस हद तक पहुँच सकता है । अवध के इतिहास के प्रख्येक लेखक नेजो घटनाएँ बयान की हैं। उन सबसे यही सिद्ध होता है कि उस प्रान्त में अंगरेज़ को दख़ल देना जिस दरजे अंगरेजों के नाम पर कल था उस दरजे तक ही अवध दरबार