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डलहौज़ी की भू-पिपासा

डलहौजी की भू-पिपासा १३४! सन् १८४७ में नबाव बाजियली नाह तल पर बैठा । याजिद प्रारती शाह नौजवान, उरसादी और समझदार नवा वाजि स्ली था । उसने अवध के शासन में अनेक सुधार शाद का शासन किए 1 यह समझ गया कि प्रबंध की सस्तनत का वास्तविक रोग क्या है । जिस प्रभारी याजिदृअली शाद ; ऊपर विपय लोलुपता के असंख्य श्रृंटे ऑौर टेपपूर्ण इलज़ाम लगाए से जा चुके हैं, उसने तख पर बैठते ही सबसे पहले अपनी ही सर्दी द सेना को सुधारने ौर उसे फिर से मज़बूत करने के जोरदार. के प्रया प्रारम्भ किए । सेना के अनुशासन के लिए उसने अनेक नए गौर कठोर नियम बनाए। उसने गो प्रपने सामने फील । में क्य करानी शुरू की। में लखनऊ दरबार की समस्त पलटनों को प्रति दिन सूर्योदय में पहले फायदे के मैदान में जमा हो जाना पड़ता सेना का । था 1 नबाय बाजिली शाह स्वयं मुद्र से संगठन पूर्व सेनापति की बर्फ पहन कर, घोड़े पर सवार होकर मैदान में पहुँच जाता था । यदि किसी पलटन को पाने में

  • देर होती थी तो उससे दो हज़ार रुपए जुरमाना वसूल किया जाता

-था । इतिहास लेखनफ मेटॉफ् लिखता है कि याजिद अली शाद अपने नियम का इतना पाबन्द था कि यदि कभी किसी कार- के यश उसे देर होती थी तो इतनी ही रकम जुरमाने की यह स्वयं अदा करता था 1* किन्तु बाजिद-लीशाद को प्रायः यभी भी देर

  • Neti

arrativ AItaliay, by Metali, , 32, 33.